समाज सेवा

समाज से बढकर कुस नही , क्या पैसा क्या नाम दर्शन करो समाज के , हो गये चारो धाम""" "समाज सेवा ही सर्वो परी सेवा है

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सभी देवासी भाई-बहिनों को शिवरात्रि कि हार्दिक शुभकामनाएं

देवासी की उत्पत्ति

देवासी की उत्पत्ति और इतिहास रेबारी राईका देवासी देसाई या गोपालक के नाम से जानी जाती यह ज्ञाति राजपूत जाति मे से उतर आई है! ऐसा कई विद्वानो का मानना है! रेबारी को भारत में रायका देसाई देवासी धनगर पाल हीरावंशी कुरुकुरबा कुरमा कुरबरु गडरिया गाडरी गडेरी गद्दी बधेल के नाम से भी जाने जाते है! यह जाति भली भोली और श्रध्धाळु होने से देवो का वास उसमेa रहता है या देव के वंशज होने से उसे देवासी के नाम से भी जानी जाती है! रेबारी शब्द मूल रवड शब्द मे से उतर आया है! रेवड+ याने ढोर या पशु या गडर का टौला! और पशुओ का टोला को रखता है उसे रेवाडी के नाम से पहचाना जाता Fkk और बाद मे अपभ्रंश हो जाने से यह शब्द रेबारी हो गया! रबारी पूरे भारत मsa फैले हुए है! विशेष करके उत्तर पश्विम और मध्य भारत मे! वैसे तो पाकिस्तान मे भी अंदाजित 8000 रेबारी है! रेबारी जाति का इतिहास बहुत पूराना है! लेकीन शुरू से ही पशुपालन का मुख्य व्यवसाय और घुमंतू (भ्रमणीय जीवन होने से कोई आधारभुत ऐतिहासिक ग्रंथ fलखा नहीa गया और अभी जो भी इतिहास fमल रहा है वो दंतकथाओ पर आधाfरत है! मानव बस्ती से हंमेशा दूर रहने से रेबारी समाज समय के साथ परिवर्तन नही ला सका है! अभी भी ईस समाज मे रिfतरीवाज पोशाक खोराक ज्यो का त्यो रहा है! 21वीं सदीa मे शिक्षित समाज के संम्पर्क मे आने से शिक्षण लेने से सरकारी नौकरी O;kikj उद्योग खेती बगैरह जरूर अपनाया है! हर tkfr की उत्पत्ति के बारे में अलग अलग राय होती है वैसे ही इस जाति के बारे मे भी कई मान्यताएW है! इस जाति के बारे मे पौराणिक बात यह कहha जाती है कि भगवान शिवजी ने अपनी ऊट (Camel) की देखभाल के fल, एक आदमी का सर्जन fकया वो ही पहला रेबारी था! उनकी चार बेटी हुई शिवजी ने उनके ब्याह राजपूत (क्षत्रीय जाति के पुरुषोa के साथ fकये! और उनकीa संतku हुई वो हिमालय के नियम के बहार हुई थी इस fलये वो राहबरी या रेबारी के नाम से जानी जाने लगी! एक मान्यता के अनुसार मक्का- मदीना के इलाको मे महम्मद पयंगबर साहब से पहले जो अराजकता फैली थी जिनके कारणे मूर्ति पूजा का विरोध होने लगा! उसके परिणाम से यह जाति ने अपना धर्म बचाना मुश्किल होने लगा! तब अपने देवी-देवताओको पालखी मे लेके हिमालय के रास्ते से भारत मे प्रवेश fकया Fkk ]अभी भी कई रेबारी अपने देवी- देवताvksa को मूर्तिरूप प्रस्थापित नहीa करते पालखी मे ही रखते हैA उसमे हूण और शक का टौला सामेल था! रेबारी tkfr मे आज भी हूण vVd है! इससे यह अनुमान लगाया जाता है की हुण इस रेबारी जाति मे fमल गये होंगे! एक ऐसा मत भी है की भगवान परशुराम ने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रीय विहीन की तब 133 क्षत्रीयोa ने परशुराम के डर से क्ष्रात्रधर्म छोडकर पशुपालन का काम स्वीकार लिया! ईस fलये वो विहोतर के नाम से जाने जाने लगे! विहोतेर मतलब 20+$100$+13@ 133 भाट चारण और वहीa वं’kksa के ग्रंथो के आधार पर मूल पुरुष को 16 लडकीयां हुई और वो 16 लडfकयाW का ब्याह 16 क्षत्रीय कुल के पुरुषो साथ fकया गया! जो हिमालय के नियम बहार थे सोलाह की जो वंसज हुए वो राहबारी और बाद मे राहबारी का अपभ्रंश होने से रेबारी के नाम से पहचानने लगे! बाद मे सोलाह की जो larku हुई वो एक सkS तेत्रीस शाखा मेa fबखर गई जो विशातेर विशोतेर नात याने एक सkS बिस और तेरह से जानी गई! प्रथम यह जाति रेबारी से पहचानी गईA लेकीन वो राजपुत्र या राजपूत होने से रायपुत्र के नाम से और रायपुत्र का अपभ्रंश होने से रायका के नाम से गायोa पालन करने से गोपालक के नाम से महाभारत के समय मे पांडवो का महत्वपूर्ण काम करने से देसाई के नाम से भी यह जाति पहचानी जाने लगी! पौराणिक बातोa मे जो भी हो, किंतु ईस जाति का मूल वतन एशिया मायनोर होगा की जहाW से आर्यो भारत भूमि मे आये थे! आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था ओर रेबारी का मुख्य व्यवसाय आज भी पशुपालन Fkk! इसी fलये यह अनुमान लगाया जाता है की आर्यो के साथ यह जाती भारत में आयी होंगी! ऐतिहाfसक पूरotksa%- रेबारी जातिका मुख्य व्यवसाय पशुपालन होने के बाद भी महाभारत युग से मध्य राजपूत युग तक राजा महाराजाओ के गुप्त संदेशा पहुचाने का काम व बहेन-पुत्री और पुत्रवधुओ को लाने या छोडने जाने के काम अति विश्वासपूर्वक रेबारी का उपयोग ही किया जाता Fkk! ऐसी कई घटनाए इतिहास के पन्नोa मे दर्ज है! पांडवो के पास कई लोग होने के पस्च्यात महाभारत के यु/n के समय विराट नगरी के हस्तिनापुर इक रात मे सांढणी ऊंट पर साडे चार सो माईलका अंतर काटकर उत्त राको सही सलामत पहqचाने वाला रत्नो रखे वाल रेबारी था! जब भारत पर महंमद गझनवी ने आक्रमण किया था तब उसका वीरता पूर्वक सामना करने वाले महाराजा हमीर देवका संदेशा भारत के तमाम राजवhjksa को पहुचाने वाला सांढणी सवार रेबारी ही तो था! जूनागढ के इतिहासकार डkW शंभुप्रसाद देसाई ने नोंधV की है fक वे रावल का एक बलवान रेबारी हमीर मुस्लिमो के त्रासके सामने खुशरो खां नाम धारण करके सूबा बना था जो बाद मे दिल्ही की गाद्दी पर बैठके सुलतान बना था! सने 1901 मे fलखा गया बोम्बे गेझेटियर मे fलखा है की रेबारीओa की शारिरीक मजबूती देख के लगता है की शायद वो पर्शियन वंश के भी हो सकते है और वो पर्शिया से भारत मे आये होंगे रेबारीओ मे एक आग नामनी शाख है! और पर्शियनो आग-अग्नि के पूजक होते



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